साईं बाबा की बात करते हुए अक्सर भक्तों के मुंह से ‘सबका मालिक एक है’। लेकिन कभी सोचा है ये युक्ति आई कहां से? कैसे साईं के मुंह से ये शब्द निकले या कैसे भक्तों ने इसे अपने में समा लिया? क्यों भक्त इस लाइन में पूरा जीवन महसूस कर लेते हैं। साईं बाबा ने बहुत सारी प्रेरणा देनी वाली बातों में से इसे ही क्यों चुना। ‘सबका मालिक एक है’, साईं बाबा के दूसरे रूप में भी याद किया जाता है। यही वजह है कि दुनियाभर में साईं के अनगिनत भक्त हैं, जो उन्हें बिना किसी जात-पात ओर बात किए, पूजते हैं। ‘सबका मालिक एक है‘, इस युक्ति के पीछे की कहानी, जान लीजिए-
दरअसल साईं के भक्तों की मानें तो साईं हिंदू थे, लेकिन कुछ भक्तों के हिसाब से वो मुसलमान थे। इस वजह से भी ‘सबका मालिक एक है’ की युक्ति को सही माना जाता है। माना जाता है कि नाथ संप्रदाय के लोग ऐसा ही जीवन जीते हैं।
नाथ संप्रदाय–
साईं बाबा को भक्त नाथ संप्रदाय का मानते थे और इसके पीछे भी एक कहानी है। भक्तों ने ऐसा साईं बाबा के रहन-सहन को देखकर बोला था। साईं बाबा हाथ में कमंडल लिए रहते थे, भिक्षा मांगकर जीवन गुजारते थे, उनके कानों में छेद थे और वो हुक्का भी पीते थे। ऐसा नाथ संप्रदाय के लोग ही करते हैं। जबकि इसके बावजूद कुछ भक्त उन्हें मुसलमान भी मानते थे।
मुसलमान भी थे साईं?-
जैसे कुछ भक्त साईं बाबा को नाथ संप्रदाय का मानते हैं ठीक वैसे ही कुछ भक्त उन्हें मुसलमान भी मानते रहे हैं। दरअसल साईं फारसी का शब्द है और इसका अर्थ संत है। पुराने समय में मुसलमान सन्यासियों को संत ही कहा जाता था। साईं की वेषभूषा भी कुछ-कुछ ऐसी ही थी। तभी शिर्डी के एक पुजारी ने उन्हें मुसलमान मान लिया था और साईं नाम दे दिया था। माना ये भी जाता है कि अक्सर मस्जिद में रहने वाले साईं बाबा मुसलमान होने की वजह से ऐसा करते हैं। साईं बाबा तो मस्जिद से बर्तन मंगवाकर फातिहा पढ़वाने के बाद ही खाना खाते थे।
साईं सच्चरित कहती है–
साईं सच्चरित, साईं के जीवन पर लिखी गई एक अकेली किताब है। इसमें ये माना गया है कि साईं ने सबका मालिक एक है जैसी बात कही ही नहीं थी। वो तो ‘अल्लाह मालिक एक’ कहा करते थे। जबकि उन्हें हिंदू बताने के लिए कई भक्तों ने उनकी युक्ति को ‘सबका मालिक एक है’ में बदल दिया।