ऐसे असहाय लोग जिन्हें समाज अपमानित करके बेदखल कर देता था, इन लोगों के लिए हमेशा साईं बाबा के द्वार खुले रहते थे। अपने जीवन काल में साईं बाबा सदैव ही प्रेम, दान पुण्य, आत्म संतुष्टि, अध्यात्मिक ज्ञान और दया धर्म को जीवन में उतारने पर ज़ोर दिया करते थे।
उन्हें समाज में पल रहे भेदभाव से कड़ा एतराज था। बाबा हमेशा जन्म के आधार पर भेदभाव के विरुद्ध रहते थे। साईं बाबा लोगों को अध्यात्म का वास्तविक पाठ पढ़ाने के लिए सभी धर्म के संतो के साथ समय व्यतीत किया करते थे।
साईं बाबा एकेश्वरवाद को मानते थे और लोगों को भी इसे स्वीकार करने के लिए प्रेरित करते थे। इसके अलावा बाबा विभिन्न प्रकार के असंगत कर्मकांड के भी विरुद्ध रहते थे। साईं बाबा के अनुसार मानवता ही ब्रह्मांड का सबसे बड़ा धर्म है और इसे मानने वाला कर्मवीर होता है।
उनके अनुसार सत्य से बड़ा कोई आभूषण नहीं। उन्होंने सदा ही अपने शिष्यों व श्रद्धालुओं को मानवता में विश्वास रखने की शिक्षा दी है तथा हिंदू मुस्लिम के बीच भाईचारा निर्मित करने के लिए ढेरों शिक्षाएं प्रदान किया है। उनके श्रद्धालुओं द्वारा प्रेम और करुणा की शिक्षा को हर तरफ प्रसारित किया जा रहा है।